कार्यक्रम
- 1.चातुर्मास्यव्रतानुष्ठान
वि. सं. २०८०, आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा से भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा तदानुसार
दिनांक : ३ जुलाई २०२३ से २९ सितम्बर २०२३








पश्चिमाम्नाय अनंतश्री विभूषित द्वारकाशारदापीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामीश्री सदानन्द सरस्वती जी महाराज श्रृंगेरी शारदाम्बा मंदिर के दर्शनार्थ हेतु पधारे।
एवं दक्षिणाम्नाय श्रृंगेरी शारदापीठ के अनंतश्री विभूषित जगद्गुरु शंकराचार्य महासन्निधानम् श्री श्री भारती तीर्थ जी महाराज
अनंतश्री विभूषित जगद्गुर शंकराचार्य श्री विधुशेखर भारती जी महाराज का दर्शन लाभ कर वर्तमान समस्याओं पर विचार विमर्श भी किए।
लेटेस्ट न्यूज़
मठ
'मठ' शब्द धार्मिक प्रतिष्ठान का पर्याय बन चुका है। हैमकोश के अनुसार 'आम्नाय पद का अर्थ कुल, आगम और उपदेश है। अमरकोश इसका एक अर्थ सम्प्रदाय' बतलाता है। भानुजी दीक्षित (रामाश्रम) अपनी टीका में निर्गलित अर्थ 'गुरुपरम्परागत सदुपदेश" देते हैं । अतः वर्तमान सन्दर्भ में 'मठाम्नाव' का अर्थ होगा 'मठों से सम्बद्ध उपदेश अथवा विवरण। 'अनुशासन' पद निर्देश, व्यवस्था, नियन्त्रण सदृश अर्थों का वाचक है। इसमें लगा उपपद 'महा' अनुशासन की सर्वोत्कृष्टता, का सर्वोच्चता श्रेष्ठता का, ज्ञापक है। 'मठाम्नाय महानुशासन का निलित अर्थ हुआ वह ग्रन्थ जिसमें शाङ्कर मठों से सम्बद्ध विवरण और व्यवस्था का निरूपण है । इसका एक नामान्तर 'मठाम्नाय- सेतु' भी प्राप्त होता है। 'आम्नाय पद मात्र 'उपदेश' या परम्परा का वाचक न रह कर सम्बद्ध मठ का भी वाचक हो गया, जैसा कि ऊर्ध्वाम्नाय, पश्चिमाम्नाय सदृश प्रयोगों से स्पष्ट है। वस्तुतः 'मठाम्नाव' एवं 'महानुशासन' पृथक-पृथक नहीं अपितु एक ही ग्रन्थ है। सप्तम 'निष्कल-आम्नाय' का निरूपण करने के तत्काल बाद ही 'महानुशासन' अंश प्रारम्भ होता है-